मयकदा पास हैं पर बंदिश हैं ही कुछ ऐसी .....
मयकश बादशा है और हम सब दिलजले हैं !!
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28 दिस॰ 2008
ये नन्हें मज़दूर : ये रोटी की तलाश में मज़बूर
देख रहे हैं न आप ये चित्र ? बोलती आंखों से बात बांचेगा कौन क्यों हो मौन गौर से देखो चित्र मेरी...? तुम्हारी....? हम सब की जिम्मेदारी है मित्र !! (सभी फोटो भाई संतराम चौधरी )
कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता ! आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !! बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से ! दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के ! सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!
nice post
जवाब देंहटाएंमैने अपने ब्लाग पर एक लेख िलखा है - आत्मिवश्वास से जीतें िजंदगी की जंग-समय हो तो पढें और कमेंट भी दें-
http://www.ashokvichar.blogspot.com
" व्याकुल कर गये ये नन्हे मजूरों के चित्र ,
जवाब देंहटाएंRegards
Ashok ji,Seema ji
जवाब देंहटाएंThank's for comment
हम लोग लेख और कवितायें ही तो लिख सकते हैं इनको देख कर. आभार ..
जवाब देंहटाएंSir
जवाब देंहटाएंham utana hee karen
इस तरह के कुछ सीन सीधे दिल में उतर जाते हैं पर कर भी कुछ नहीं सकते बस हम महसूस कर सकते हैं ऐसे ही एक कविता मैंने भी लिखी थी कभी समय मिले तो पढना
जवाब देंहटाएंhttp://mohankaman.blogspot.com/2008/09/blog-post_30.html