28 दिस॰ 2008

ये नन्हें मज़दूर : ये रोटी की तलाश में मज़बूर


देख रहे हैं न आप ये चित्र ?
बोलती आंखों से बात बांचेगा कौन
क्यों हो मौन
गौर से देखो चित्र
मेरी...?
तुम्हारी....?
हम सब की
जिम्मेदारी है मित्र !!
(सभी फोटो भाई संतराम चौधरी )

6 टिप्‍पणियां:

  1. nice post

    मैने अपने ब्लाग पर एक लेख िलखा है - आत्मिवश्वास से जीतें िजंदगी की जंग-समय हो तो पढें और कमेंट भी दें-

    http://www.ashokvichar.blogspot.com

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  2. " व्याकुल कर गये ये नन्हे मजूरों के चित्र ,
    Regards

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  3. हम लोग लेख और कवितायें ही तो लिख सकते हैं इनको देख कर. आभार ..

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  4. इस तरह के कुछ सीन सीधे दिल में उतर जाते हैं पर कर भी कुछ नहीं सकते बस हम महसूस कर सकते हैं ऐसे ही एक कविता मैंने भी लिखी थी कभी समय मिले तो पढना

    http://mohankaman.blogspot.com/2008/09/blog-post_30.html

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!