“सम्मान के यश को दुगना करने की रीत निभाई जबलपुर के स्नेहीजनों नें किस किस का आभार कहूं कैसे कहूं स्तब्ध हूं. जी कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो दीवारें पोतने का काम करते हैं, उन पुताई करने वालों का भी आभारी हूं उनसे न तो मुझे गुरेज़ है न ही उनके लिये मेरे मन में कोई नकारात्मक भाव शुभचिंतकों का आभारी हूं….!”... मित्रो मित्राणियो रवींद्र जी और अविनाश जी के आग्रह टालना असम्भव था. ____________________________ जी उस दिन घर में घर में काफ़ी तनाव था चचेरे भाई की शादी का तय होना और मेरा ये ऐलान कर देना कि मैं "दिल्ली जाऊंगा" सबको रास न आया.. पर जब तीस का फ़्लाईट का टिकट मंगवाया तो सब को धीरज आ गया २९ अप्रैल तक की सारी रस्मों में सबके साथ रहूंगा. दूल्हा सचिन भी खुश हुआ..सबने कहा ठीक है बरात में न सही महत्वपूर्णं अवसरों पर तो साथ रहोगे. तीस अप्रैल से एक मई तक दिल्ली जाने की अनुमति मिल गई. ____________________________ __________________________________ मेरी नज़र में दिल्ली समागम एक ऐसा समागम था जो एक सूत्र में सबको पिरोने का मादआ रखता है. मुझे तो आशीष से अभिसिक्त कर ही दिया था मेरी ताई ने.. ताई एक स्नेह की पोटली अपने हृदय में लेकर चलतीं हैं. लो हम खु हेंच लिए फोटुक बनियान ने बयान कर ही दिया की दिल्ली में ए सी फ़ैल हैं
मगन मन सुनते अवधिया जी पाबला जी __________________________________ दिल्ली एक आग्रह था मेरे लिए . आपके लिए दिल्ली क्या है इस बात से मुझे कोई सरोकार कम अज कम इस आलेख में तो नहीं . अविनाश वाचस्पति पद्म जी , ललित जी, अग्रवाल जी, अरे हाँ रवींद्र प्रभात जी केवलराम जी इन सबके शीतल व्यवहार ने तमतमाई दिल्ली उष्म हवाओं से राहत दिलाई. उत्तरांचल से सदलबल पधारे शास्त्री जी तो मानो उधर की ठंडक भी ले आए थे. गांधी शान्ति भवन तक पहुंचाने वाले रास्ता बताऊ दिल्ली वासी या तो रास्ता ग़लत बता रहे थे या हमारी समझ में कम आया बहरहाल हम पहुंच गये गांधी भवन यानी बेचारा गांधी भवन सचमुच बेचारा है... तभी तो ब्लागर्स ए सी के जुगाड़ में होटलों में रुके. ललित जी एवम पाबला जी अवधिया जी, संजीव तिवारी, सभी होटल में रुके बार बार ललित जी मुझे दम दे रहे थे आ जाओ आ जाओ सो मैने रात आने का वादा किया . __________________________________________ क्रमश: |
मयकदा पास हैं पर बंदिश हैं ही कुछ ऐसी ..... मयकश बादशा है और हम सब दिलजले हैं !!
Ad
16 मई 2011
छब्बीस घण्टे बीस मिनिट दिल्ली में part 01
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
अच्छा लगा तस्वीरें देख कर...
जवाब देंहटाएंJaldabji me nahi... Aram se likhiye. chhote font ka upyog na kare. kai dino se dekh raha hun ki font intne chhote hote hain. khurdbiin laga ke dekhana padta hai..
जवाब देंहटाएंयही माहौल बना रहे।
जवाब देंहटाएंअति सुंदर चित्र जी धन्यवाद
जवाब देंहटाएं