मयकदा पास हैं पर बंदिश हैं ही कुछ ऐसी .....
मयकश बादशा है और हम सब दिलजले हैं !!
15 मई 2007
आईना रूबरू आईने के हो जाए जरा बात दौनों की चली जाये बहुत गहरे में
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता ! आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !! बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से ! दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के ! सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!