15 मई 2007

समयांतर

प्रगतिशीलता और मध्य वर्ग के बीच के नातों
की समीक्षा करते ये वागविलासी अब तो गांधी की लकड़ी पकड़ कर दौड़ने को मजबूर हो गए लगाए हें , मेरी बाल सुलभ वृतियों ने पूछने को मजबूर किया -"भाई साहब गांधी अब ज़रूरी क्यों ?"
वो तो पहलेसे ही थे ।
तो
आपको आज याद आया मध्य वर्ग का बच्चा बच्चा पहले से ही जानता है !
"भाई साहब गलत बात करना बंद करो मध्यवर्ग गांधी को सोच भी नहीं पाता
भयी ! आप किस मुगालते में हें ?
सच ही है जब से विजय बहादुर जीं
सोचने लगे हें तब से ही गांधी को गांधी मानिये जैसा वो कहें वैसा ही सोचिये ?

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!