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7 जून 2007

चांद

वो बेज़ुबान कुछ बोलता नहीं
उसे हर बात में शामिल ना करो ।
चांद तो अपनी राह चलता है !
फेंक पत्थर उसको घायल न करो !!
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तुमने समझा है उसे क्या इश्क का दरबान है वो
या तुम्हारी प्रेयसी के चेहरे की मुस्कान है वो !
कोई तो उसको है पड़ता ऐसे
खैयाम का दीवान है वो !!
कुछ भी सोचो मीत मेरे " चांद"
बारे में लेकिन दाग उस पर होने का इल्जाम ना दो !!
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1 टिप्पणी:

कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!

कितना असरदार

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