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17 जून 2007

अनचेते अमलतास


अनचेते अमलतास नन्हें कतिपय पलाश। रेणु सने शिशुओं-सी नयनों में लिए आस।।
अनचेते चेतेंगें सावन में नन्हें इतराएँगे आँगन में पालो दोनों को ढँक दामन में।आँगन अरु उपवन के ये उजास।
ख़्वाबों में हम सबके बचपन भी उपवन भी।मानस में हम सबके अवगुंठित चिंतन भी।हम सब खोजते स्वप्नों के नित विकास।।
मौसम जब बदलें तो पूत अरु पलाश कीदेखभाल तेज़ हुई साथ अमलतास कीआओ सम्हालें इन्हें ये तो अपने न्यास।।
गिरीश बिल्लोरे मुकुल

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!

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