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10 जून 2007

मानवता है अब संकट मे

हर दिल से सदा ये आती है
मानवता है अब संकट में
सपनों ने आना छोड़ दिया
पलकें भी नहीं सोने देतीं
डर इतना है हां एक मन में
धड़कनें नहीं रोने देतीं !!

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!

कितना असरदार

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