आईनों की शक्ल मॆं घूमते ये आदमी ,
हाथ मेरा बेवजह चूमते ये आदमी !
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नस्ल कुत्तों की शर्माने लगी है ,
देखिए हर क्या-क्या सूंघते ये आदमी!!
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अर्जियों ,आवेदनों ,और नस्तियों पे रख के सर ,
टूटे गन्नों की फसल से उंघते ये... आदमी !!
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कौन कहता है कि दुनियां घूमती है ........
हम को तो दीखें घूमते ये आदमी !!
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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!