18 जून 2007

चांद और शुक्र का मिलन

शुक्र और चांद अचानक नहीं इनका मिलाना तयशुदा था। आज का आकाश अगरचे बादलों भरा न होया तो इस पल को सब निहारते। कईयों ने तो इसे निहारा भी होगा .....उनके आकाश में बादल जो नहीं हैं ।
प्रेम की परिभाषा भी यहीं कहीं मिलती है ....!
"प्रेम"एक ऐसा भाव है जिसको स्वर,रंग ,शब्द , संकेत, यहाँ तक कि पत्थरों ने भी अभिव्यक्त करने में कोई कसर नहीं छोड़ी ...... खजुराहो से ताजमहल तक उर्वशी से मोनालिसा तक ,जाने कितनी बातें हैं जो प्रेम के इर्दगिर्द घूमतीं हैं ....!
"सच प्रेम ही संसार कि नींव है "......आसक्ति प्रेम है ही नहीं ! प्रेम तो अहो ! अमृत है ! प्रेम न तो पीड़ा देता है न ही वो रुलाता। आशा और विश्वास का अमिय है ..प्रेम सोंदर्य का मोहताज कभी नहीं हो सकता ...परंतु जब यह अभिव्यक्त होता है तो जन्म लेतें कुमारसंभव जैसे महाकाव्य !! किसी ने क्या ख़ूब कहा -"जिस्म कि बात नहीं ये "
सच !यदि दिल तक जाने कि बात हो तो ....आहिस्ता आहिस्ता जो भाव जन्मता है वोही है प्रेम।

अगर आप सच्चा प्रेम देखना चाहतें हैं ..... एक ऐसी मजदूर माँ को देखिए जो मौका मिलते ही अपने शिशु को अमिय पान करा रही है...क्या आप देख नहीं पा रहे हैं अरे ! इसके लिए आपमें वो भाव होना ज़रूरी जो स्तनपान करते शिशु में है।
अगर इसे आप प्रेम का उदाहरण नहीं माने तो फिर आप को एक बार फिर जन्म लेना ही होगा
!
शिवाजी ने सिपाही द्वारा लायी गयी विजित राज्य की महिला को "माँ" कहा तो भारत को एक नयी परिभाषा मिल ही गयी प्रेम की।

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!