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20 जून 2007

कमसिनी यूं इश्क में अच्छी नहीं


राह-ए-सरगम सुबह से खामोश सी
रात बिजुरी दमकी है अरमानों में !!
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दो न दो आवाज़ हमको आप ने
जिस अदा से देखा है हम क्या कहें ..?
आज तक ये हम सह रहे हैं ये विरह
आप ही कहिये कि हम कितना सहें !!
कमसिनी यूं इश्क में अच्छी नहीं ,अपने भी मिल जायेगें तुम्हें अन्जानों में !

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होके लापरवाह मत मुझसे मिलो
अस्पतालों में महँगी हैं दवाएं !
एक आशिक के लिए फिर सोचिये
कौन क़ाफिर मांगेगा रब से दुआएं !!
जब देखा है तुम्हें जाने-ग़ज़ल , लगता है हम बस गए मयखानों में !!
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गुनगुनी दोपहरी में उन सर्दियों की
आपका आना छत पे तापने !

तरबतर हम पसीने,से हो गए
साधा निशाना निगाहों से आपने !!
इश्क का इज़हार कैसे हम करें , जाने क्या है आपके अरमानों में !!

**गिरीश बिल्लोरे "मुकुल"

1 टिप्पणी:

  1. हिन्‍दी ब्‍लागिंग में हार्दिक स्‍वागत है।

    बहुत अच्‍छा ब्‍लगा है। बधाई

    जवाब देंहटाएं

कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!

कितना असरदार

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