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22 जून 2007

सुबह के लिए

रात गहरी नींद सोना है जरूरी
कल सुनहरी भोर का आना नियत है।
सपन अठखेलियाँ भोर तक चलतीं रहीं
आम पर कोयल का गाना नियत है।।
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दिन दोपहरी शाम तक का दोड़ना , किसी से मिलाना किसी को छोड़ना।

गया वो जाने दो उसको जो विगत है , सब को वो ही मिलेगा जो कि नियत है। ।
कल .........................................
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मनचले लोगों ने आके इस शहर में,रात उसनीदे गहरे प्रहर में !
द्वार गलियों के बजाए और डराया,कर गए सब कुछ मद के असर में।।
बड़े भीरु सुबह उठ कुछ भी न बोले, सिद्ध करते कि वो कितने विनत हैं!!
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लोग हैं चालाक चतुराई के पुतले,कलई के बरतन सरीखे कितने उजले!
गिरागिटों को शर्म अब आने लगी है,आदमी से जल्द रंग जिननें न बदले!!
दम हिलाते -भोंकते स्वानों से आदमी ने ये जीने की जुगत है ,
*गिरीश बिल्लोरे "मुकुल "

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!

कितना असरदार

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