एक दिन तुमने मुझे
चूल्हा -गोलाई के नीचे से पुकारा था !!
हाँ ...!
मुझे ही तो पुकारा था
तुमने
उस दिन जब
उस गाँव की भोली जनता के
दोगले नेता से मिलकर मैं
उदास ...नहीं हताश होकर लौटा था !
हाँ सूरज !
याद करो
तुमने मुझे ही पुकारा हां....!
अपनी मक्कारियों की से जनता को जकड़्ते
उस मगर -मच्छ ने ईमानदारी की राह को कंटीली झाड़ियों
पाटा था ....और मैं बेबस ....लौट रहा था
सूरज......मुझे तुम्हारी आग की ज़रूरत नहीं है ....
मेरी ईमानदारी की आग उसे जला देगी
मुझे तुम्हारी आग के ज़रूरत कब-कब पड़ीं ...?
फिर भी तुम्हारा शुक्रिया .......
तुम जो मुझे याद ओ करते तो हो !!
*girish billore "mukul"
मेरी ईमानदारी की आग उसे जला देगी
जवाब देंहटाएंमुझे तुम्हारी आग के ज़रूरत कब-कब पड़ीं ...?
फिर भी तुम्हारा शुक्रिया .......
तुम जो मुझे याद ओ करते तो हो !!
bhaut sundar rachnaa hai mukul jee ;
Sudeep Sakalle