साभार :-तात्पर्य ब्लाग |
कलम की कन्दील
अपने साथ लिए
रात-बे-रात निकलता हूँ....
यूँ ही सूनी सड़कों पर ..!!
सोचते होगे न ?
किसकी तलाश है मुझको...
मेरे मेहबूब वो तेरे सिवा कोई नहीं और नहीं...
ओ मेरी मुकम्मल नज़्म
मैं हर रात
खुद से निकलता हूं
जिसकी तलाश में वो तुम ही हो
ओ मेरी मुकम्मल नज़्म
तुम कब मिलोगी
रोशनाई की रोशनी में
इल्म का खुशबूदार गुलाब लिये
जाने कब से तलाश में हूं...
जो भी मिलता है उन
सबसे पूछता हूं तुम कहां हो
किसी ने कहा- तुम यहां हो !
किसी ने कहा था- न, तुम वहां हो !!
तुम जो मुकम्मल हो
मुझे मालूम है
सड़क पर न मिलोगी
मिलोगी मुझे
व्योम के उस पार
जहां .... अंतहीन उजास है..
सच मेरे लिये वो जगह खास है
मुझे तुम तक पहुंचने के
पथ की तलाश है... !!
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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!