5 जुल॰ 2007

आईए इक भोर लेकर पोटली मे चलें घर उनके


आईए इक भोर
लेकर पोटली में चलें

घर उनके जहाँ हो घुप अन्धेरा,

जिनने देखा न हो इक युग से सवेरा !!

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पोटली मे -इतनी -रश्मियाँ रख लेना इतनी
कि कोई मांगे रास्ते मे कम न हो !

हर किसी मोहताज को दे-देगें हम...!!

और हाँ ! बांटने मे हमको भी कुछ गम न हो !!

सूरज अकेला है मदद तो नही मांगता फिर भी
हम दीपक उसके काम को आगे बढ़ाए--

चलो उठो पोटली में भोर लेकर उजियारा बाँट आएं ......!!

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!