आईए इक भोर
लेकर पोटली में चलें
लेकर पोटली में चलें
घर उनके जहाँ हो घुप अन्धेरा,
जिनने देखा न हो इक युग से सवेरा !!
***********
पोटली मे -इतनी -रश्मियाँ रख लेना इतनी
कि कोई मांगे रास्ते मे कम न हो !
कि कोई मांगे रास्ते मे कम न हो !
हर किसी मोहताज को दे-देगें हम...!!
और हाँ ! बांटने मे हमको भी कुछ गम न हो !!
सूरज अकेला है मदद तो नही मांगता फिर भी
हम दीपक उसके काम को आगे बढ़ाए--
हम दीपक उसके काम को आगे बढ़ाए--
चलो उठो पोटली में भोर लेकर उजियारा बाँट आएं ......!!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!