हम जो आदी से हों गए हैं विस्फोट के साथ
तार -तार होती
इंसानियत को देखने
के
लोग जो भारत हैं
लोग जो हैदराबाद हैं...
लोग जो भोपाल हैं ....
लोग जो मुम्बई हैं ...
लोग जो हिंदुस्तान हैं....
लोग जो लता जीं के ग़ज़ल सुनते हैं
लोग जो रफी साहब के गाये भजन गुनते हैं
लोग जो "देबा-शरीफ" में जाकर मन ही मन
मानस पूजक बन जाते हैं ....!
लोग जो क्रिसमस ,ईद , दीवाली ,
साथ-साथ मनाते हैं .......!
वो ही तब्दील हों जाते हैं......चीथड़ों में.... और तार तार हों जाती है
" इंसानियत "
बिल्कुल सही कह रहे हैं आप । कविता बहुत विचलित करने वाली लगी ।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती