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26 अग॰ 2007

आखर-पाती


"आखर पाती"
मेरे शहर में वे दूकान दारी के अलावा क्या करते हैं मुझे नहीं मालूम ! सबको व्यवसायिक होना ही चाहिऐ । यदि घोड़ा घास से "आई लव यू" कहेगा तो
खायेगा क्या...... पैसा अरे ! पैसा घोड़े थोड़े ही खाते हैं... इसे खाने वाला बड़े
हौसले वाला जानवर होता है..... जिसे भगवान ने दिमाग देकर सबसे ताकत
वर , बनाया है... इस मुद्दे पर फिर कभी लिखूंगा ।
सो वो श्री मान हर लल्लू पंजू को महान साहित्य सेवी का छलावा दिखा कर
[इस फोटो को इस आलेख से जोड़ना ज़रूरी नहीं]
दस बीस रचनाओं को ५०-६० बना कर छपवा देने से लेकर मुफ़्त में बटवाने तक का म ओ यू
साइन कराने का हौसला रखते हैं। हमारे शहर में गली में एक साहित्य सेवी रहता है । उसकी अपनी
एक सदस्यीय संस्था होती है। जिसके तार उस महान हस्ताक्षर से जुड़े हैं जो सबको महान होने का
भरम बाँटता है....! उसकी
मैने उनसे कहा -"श्रीमान , गरीब रचना कारों के पास पैसा नहीं होता सो क्यों न हम उनको इन्टर नेट
से जोड़ दें...... उनके वास्ते ब्लॉग बना दें ?
श्रीमान की जेब पर डाका डालने की नौबत आती देख उनने मेरी बेईज्ज़ती बदनामी करनी शुरू कर दीं
तब से हम भी नेटिया-आखर - पाती उर्फ़ ब्लॉग से जुड़ गए ओउर आप लोगों मे अपने विचार रखने लगे
रहा सवाल श्रीमान जीं का वो अब हमको घास नहीं डालते । अब विमोचन की पातियाँ आनी भी बंद हों
गयी ।
हम हैं कि उनका पीछा नहीं छोडेगें ब्लॉग की ताकत दिखा ही देंगें ।

1 टिप्पणी:

  1. भैय्या, आखर पाती में जे सुन्दर सलोनी कन्या का फोटो देने का क्या संदर्भ है?

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!

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