"आखर पाती"
मेरे शहर में वे दूकान दारी के अलावा क्या करते हैं मुझे नहीं मालूम ! सबको व्यवसायिक होना ही चाहिऐ । यदि घोड़ा घास से "आई लव यू" कहेगा तो
खायेगा क्या...... पैसा अरे ! पैसा घोड़े थोड़े ही खाते हैं... इसे खाने वाला बड़े
हौसले वाला जानवर होता है..... जिसे भगवान ने दिमाग देकर सबसे ताकत
हौसले वाला जानवर होता है..... जिसे भगवान ने दिमाग देकर सबसे ताकत
वर , बनाया है... इस मुद्दे पर फिर कभी लिखूंगा ।
सो वो श्री मान हर लल्लू पंजू को महान साहित्य सेवी का छलावा दिखा कर
[इस फोटो को इस आलेख से जोड़ना ज़रूरी नहीं]
दस बीस रचनाओं को ५०-६० बना कर छपवा देने से लेकर मुफ़्त में बटवाने तक का म ओ यू
साइन कराने का हौसला रखते हैं। हमारे शहर में गली में एक साहित्य सेवी रहता है । उसकी अपनी
एक सदस्यीय संस्था होती है। जिसके तार उस महान हस्ताक्षर से जुड़े हैं जो सबको महान होने का
भरम बाँटता है....! उसकी
भरम बाँटता है....! उसकी
मैने उनसे कहा -"श्रीमान , गरीब रचना कारों के पास पैसा नहीं होता सो क्यों न हम उनको इन्टर नेट
से जोड़ दें...... उनके वास्ते ब्लॉग बना दें ?
श्रीमान की जेब पर डाका डालने की नौबत आती देख उनने मेरी बेईज्ज़ती बदनामी करनी शुरू कर दीं
तब से हम भी नेटिया-आखर - पाती उर्फ़ ब्लॉग से जुड़ गए ओउर आप लोगों मे अपने विचार रखने लगे
रहा सवाल श्रीमान जीं का वो अब हमको घास नहीं डालते । अब विमोचन की पातियाँ आनी भी बंद हों
गयी ।
हम हैं कि उनका पीछा नहीं छोडेगें ब्लॉग की ताकत दिखा ही देंगें ।
भैय्या, आखर पाती में जे सुन्दर सलोनी कन्या का फोटो देने का क्या संदर्भ है?
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