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24 नव॰ 2007

भारत का रक्षा धर्म-"सिखधर्म "

बधाई संदेशा!!!
के बाद आपको साफ-साफ बता देता हूँ कि सरकारी कहावत है "बने रहो पगला काम करे अगला "
पिछडे हुऐ होने का सुख इसी में है ।
पागल बनके पेड़े खाने का सुख समझदार बन के पेड़े खाने में कहाँ ...?
"हरियाली-महोत्सव" मनाके तो देखिये जी..........!
मज़ा आया जी......! आया ही होगा ?
जब गिरी भाई साहब की साँझ गुलाबी सी" हों ही चुकी है तो गुलाबी मौसम को और गुलाबी क्यों न बनाएं हम-आप

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!

कितना असरदार

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