मेरे मित्र ने रात को फोन लगा के पूछा :-"भाई.... ये रफी साहब ही क्यों "
जी में आया सुना दूं बाप-बेटे और गदहे वाली कहानी जिस में गदहे पर बाप,बेटे, दौनों के बैय्हने पर सवाल खडे किये दुनियाँ ने । भाई साहब दुनियाँ में यही सब चल रहा है आप चाहें तो चटका लगा के सुन लीजिये ये गीत
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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!