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9 दिस॰ 2007

त्रिलोचन शास्त्री नहीं रहे...


त्रिलोचन शास्त्री नहीं रहे...

जीवन मिला है यह

रतन मिला है यह

धूल में

कि

फूल में

मिला है

तो

मिला है यह

मोल-तोल इसका

अकेले कहा नहीं जाता


(3)


सुख आये दुख आये

दिन आये रात आये

फूल में

कि

धूल में

आये

जैसे

जब आये

सुख दुख एक भी

अकेले सहा नहीं जाता


(4)


चरण हैं चलता हूँ

चलता हूँ चलता हूँ

फूल में

कि

धूल में

चलता

मन

चलता हूँ

ओखी धार दिन की

अकेले बहा नहीं जाता।

साभार :-http://samkaleenjanmat.blogspot.com/2007/12/blog-post_09.html

2 टिप्‍पणियां:

  1. Hi
    Sorry that I don't know Hindi :)
    I'm Ori From Outbrain (the company that produce the rating widget you carry on your blog)

    we found out that your RSS feed URLs are directing the users to igoogle homepage.

    I guess you want to fix this so people can subscribe to your feed.

    for clarifications you can contact me at olahav(at)outbrain(dott)com

    thanks
    Ori

    जवाब देंहटाएं

कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!

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