12 मई 2008

हेमराज जैन : स्पर्श से आंकलन


पूरा दिन घर के पीछे लगे छोटे से पेढ़ पोधों की सेवा में लगे रहने वाले हेमराज जी का जीवन दुनियाँ के लिए उपहार से कम कदापि नहीं....इसके कई प्रमाण हैं,किंतु इस बात को आगे बढाना चाहता हूँ ताकि पोस्ट के नायक के साथ कोई भेदभाव न हो सके :-
इस हीरे पर वैद्यनाथ की नज़र न पड़ी होती तो इंग्लिस्तान के काय-विज्ञानियों के लिए हेमराज जी ने जो मानव शरीर की अंत: आकृतियों की रचना की एनोटोमी के अध्ययन के लिए अद्भुत सृजन भी कतई न हो पाता।
केवल अध्ययन से शरीर की नसों-शिराओं का हू ब हू चित्रांकन , वह भी उस दौर में जब न तो एक्स-रे था,नाही सोनोग्राफी - किसी विशेष अंतर्ज्ञान के बगैर ऐसा कुछ भी सम्भव न होता। मुझे अच्छी तरह से याद है ४ वर्ष पूर्व जब जैन परिवार नया घर बनवा रहा था ..... भवन के आर्किट्रेक्चर को लेकर उनके सवालों से इंजिनियर भी निरुत्तर हो जाते थे। दीवार बीम कालम सभी की स्थिति हेमराज जी केवल छू कर ज्ञात कर लेते थे। जबकि उनकी आंखों ने देखना लग भग बंद ही कर दिया था।
पहली बार मुझे शब्द-भेदी-शर-साधकों के अस्तित्व पर यकीन हुआ
श्री हेमराज जैन के प्रति आदर के साथ आप सबका आभारी हूँ जिननें विस्तार से लेखन के लिए प्रेरित किया।



3 टिप्‍पणियां:

कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!