मयकदा पास हैं पर बंदिश हैं ही कुछ ऐसी .....
मयकश बादशा है और हम सब दिलजले हैं !!
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10 जून 2008
गीत लिखो प्रतियोगिता
गीत लिखो प्रतियोगिता की पहली प्रविष्टि भेजी है भाई विकास परिहार ने जिसे " प्रविष्ठियां "को क्लिक करके पढिए और अपना मत दर्ज कीजिए , यदि आप गीत कार हैं तो इक गीत यूनिकोड में टाइप कर भेजिए तुरंत
कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता ! आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !! बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से ! दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के ! सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!
ठीक है. अभी देखते हैं.
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