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9 जून 2008

प्रेमगीत

बदल-बदल के लिबास पहनो,
जो दिल बदल दो तो वाह कर लूँ !!
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न तुम चुराओ नज़र कभी भी,
न कनखियों से निहारो मुझको !
मैं चाहता हूँ प्रिया सहज हो
जहाँ भी चाहो पुकारो मुझको !!
ये इश्क गरचे गुनाह है तो, है दिल की चाहत गुनाह कर लूँ...?
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कहो कि तुमको है इश्क़ हमसे
तो पहली बारिश में जा मैं भीगूँ,!
अगरचे तुम ने कहा नहीं कुछ
तो मैं ज़हर के पियाले पीलूँ !!
ज़हर को पीना गुनाह है तो,है दिल की चाहत गुनाह कर लूँ...?

2 टिप्‍पणियां:

कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!

कितना असरदार

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