रोज़ स्याह रात कभी माहताब जिन्दगी
एक अरसे से मुसलसल बारात ज़िन्दगी
बाद मुद्दत के कोई दोस्त मिले
तबके उफने रुके ज़ज्बात ज़िन्दगी
तेरा बज्म...! मैं बेखबर तू बेखबर
एक ऐसी सुहागे रात ज़िन्दगी
बाद मरने के सब गुमसुम बेचैन दिखें
धुंए के बुत से मुलाक़ात ज़िन्दगी .
बहुत उम्दा.आनन्द आ गया.
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया!!
जवाब देंहटाएंthank's
जवाब देंहटाएंबाद मुद्दत के कोई दोस्त मिले
जवाब देंहटाएंतबके उफने रुके ज़ज्बात ज़िन्दगी
तेरा बज्म...! मैं बेखबर तू बेखबर
एक ऐसी सुहागे रात ज़िन्दगी
bahut khoob.......
ANURAAG JEE ABHIVADAN ABHAR
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