8 जुल॰ 2008

विरह वेदना....!!




विरहन के मन की व्यथा, बांच सके तो बांच .!
मन रीता ज्यों गागरी,चुभता संयम कांच !!
चुभता संयम कांच देह अदेह सरीखी
पिय बिन लागे मिसरी मोहे मिरच सी तीखी !
विरहा अगन लगाय कित छुप गए का जानूं...?
पियु तुमको पदचाप से ही मैं पहचानूं .
कहें मुकुल कवि प्रीत प्रभू से करौ जा रीति
सब पथ कंटक पूर्ण,प्रीत पथ सहज है नीति
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4 टिप्‍पणियां:

  1. bahut achhi rachna aur virahan ki pidha ko bahut achhe sabdon main likha hai

    bhiyaa kavita aur likhe aapki kavita main bahut anuthi baat hai

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  2. समीर जी ,श्रद्धा गुरूजी
    सादर अभिवादन
    अभीभूत हो गया हूँ
    आभारी हूँ
    वास्तव में कविता में सूफियाना असर देखना चाहता हूँ
    कहें मुकुल कवि प्रीत प्रभू से करौ जा रीति
    सब पथ कंटक पूर्ण,प्रीत पथ सहज है नीति

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  3. http://www.orkut.co.in/Scrapbook.aspx?uid=6025034279180094875&pageSize=&na=3&nst=-2&nid=6025034279180094875-1215403317-18087716045748028663 PER
    sanjay NE KAHAA :
    sringar rash hai ya prem rash, jo v ho acha hai,
    nayika nayan me akash ka bojh kyu utai hai, explain

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!