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13 अग॰ 2008

इश्क...........लाली और ला........का !



ये इश्क हाय बैठे बिठाए ज़न्नत दिखाए हाँ
सावन की मदिर फुहार से हरियाया पथ तट और यहीं-कहीं एकांत में
थोड़ा रूमानी होने का हक सबको है
फोटो:संतराम चौधरी,

3 टिप्‍पणियां:

कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!

कितना असरदार

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