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7 अक्तू॰ 2008

एक जुलाई 2008

शाम को मुझे भी लगा एक बार बचपन लौटे कोशिश की बीते दिन
की
सुबह अर्चिता पारवानी स्कूल गई पहली बार एक जुलाई 2008 को

नीचे है
आर्ची

जो है शरारत का पिटारा
घर में घोडा बनाना पङता है सबको

1 टिप्पणी:

कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!

कितना असरदार

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