9 अक्तू॰ 2008

बड़ों के लिए "बालगीत"


हताशा थकन है
मन बस विश्वास है
चल मुसाफिर संग मेरे
अपनी मंजिल पास है
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कौन थकता है यहाँ पर
कौन हारा है कभी
जब से साहस संग थामा
मन विजय-पथ पे तभी
पराजय भय-भाव मन का
जीत दृढ़ विश्वास है !!
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किसने जाना कल की
झोली में रखा क्या ?
ताज कब तक सर पे
किसके है रहा क्या ?
विजय जो मन में रहा करती सदा
उस विजय की आज हमको को आस है !!
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विष उगला बंद हो
चहुँ ओर सुख मकरंद हो
चलो हिलमिल हम मिटाएँ
भय के इस अनुबंध को
भरत भू पे राम रहिमन साथ हैं
जॉन को सुखबीर पर विश्वास है !!
गिरीश बिल्लोरे मुकुल
969/-2,गेट नंबर-04
जबलपुर .प्र.

2 टिप्‍पणियां:

  1. अर्थपूर्ण बालगीत हमारे लिए। खास पसंद आईं ये पंक्तियां-
    जब से साहस संग थामा
    मन विजय-पथ पे तभी
    पराजय भय-भाव मन का
    जीत दृढ़ विश्वास है !!

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!