है मेरी माटी की भीनी खुशबू
मेरे शहर की शिलाए कोमल
जो इस को पाए वो इसको गाए
इधर का मंजर न होता ओझल
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न भूल पाया हूँ तंग गलियाँ
जहां है चौड़े दिलों के आँगन
जहाँ सभी को सभी ने जाना
शहर जबलपुर विशाल दरपन
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यहीं कबीरा सिखाने आया
यही कहीं से उठा था ओशो
इसे थी ताक़त नूर ने दी
जी हाँ सुभद्रा ! किरण थी वो तो
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यहीं से ज्ञान रंजित पहल उठी थी
यहीं से पीतल का घोड़ा दौडा
यही से अमृत ने पूजी रेवा
यहीं मिलन का फलक था चौड़ा
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यहीं मुकुल ने सपन सजाए
यहीं सुरों के सजा दूं मेले
सहर जबलपुर की तासीर देखो
न तुम अकेले न मैं अकेला
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मेरे शहर की शिलाए कोमल
जो इस को पाए वो इसको गाए
इधर का मंजर न होता ओझल
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न भूल पाया हूँ तंग गलियाँ
जहां है चौड़े दिलों के आँगन
जहाँ सभी को सभी ने जाना
शहर जबलपुर विशाल दरपन
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यहीं कबीरा सिखाने आया
यही कहीं से उठा था ओशो
इसे थी ताक़त नूर ने दी
जी हाँ सुभद्रा ! किरण थी वो तो
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यहीं से ज्ञान रंजित पहल उठी थी
यहीं से पीतल का घोड़ा दौडा
यही से अमृत ने पूजी रेवा
यहीं मिलन का फलक था चौड़ा
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यहीं मुकुल ने सपन सजाए
यहीं सुरों के सजा दूं मेले
सहर जबलपुर की तासीर देखो
न तुम अकेले न मैं अकेला
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यहीं कबीरा सिखाने आया
जवाब देंहटाएंयही कहीं से उठा था ओशो
इसे थी ताक़त नूर ने दी
जी हाँ सुभद्रा ! किरण थी वो तो
bahut hi sundar rachana
सचमुच महान है आपका शहर ..अपने शहर के प्रति आपके प्रेम की झलक इस रचना में है...बहुत सुंदर ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रोचक प्रस्तुति बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।बधाई।
जवाब देंहटाएंna tu akela na main akeli
जवाब देंहटाएंfir dil kyo khoje nayi saheli.
vo isliye ki khud ko pyar chahiye.
sanso ko jodne ke liye do tar chahiye.
sabhi kaa abhar
जवाब देंहटाएंबहुत खूब !!
जवाब देंहटाएंमेरे शहर की शिलाएं भी .........
सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए शुभकामनाएं ....