24 मार्च 2009

एक पेड़ का तबादला : देशकाल पर अजय त्रिपाठी की रपट

http://www.deshkaal.com/Details.aspx?nid=2132009112357793

पर सम्पूर्ण कथात्मक आलेख मौजूद है देशकाल और आलेखन के लिए "अजय भाई"को जितना साधुवाद कहूं कम ही होगा

धन्यवाद मनुष्य अजय त्रिपाठी-

मैं एक पीपल का दरख्त हूँ.लोग मुझे एक सौ पचास साल का बूढा बता रहे है.लेकिन सच कहूं तो मुझे भी मेरी सही उम्र नहीं मालूम क्योंकि हमारी दुनिया में मिनट, घंटे, दिन, हफ्ते और साल का कोई गणित आज तक नहीं बन सका है.मैं आजकल बड़ा इठला रहा हूँ.और कह रहा हूँ धन्यवाद मनुष्य.तूने अपनी सांसों का कर्ज उतार दिया है.एक दरख्त मनुष्य का धन्यवाद करे, ये बात बड़ी अटपटी लगती है लेकिन जब मैं आपको पूरी कहानी बताऊंगा तो आप भी कहेंगे कि मनुष्यों ने वाकई काबिले-तारीफ काम किया है.
मेरा ठिकाना जबलपुर के करमचंद चौक पर हुआ करता था…………….

आगे के बांचने के लिए यहाँ http://www.deshkaal.com जाइए

या बस यहाँ एक चटका और क्या.............!!



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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!