28 मार्च 2009

परसाई ,ठाकुर दादा,के शहर में व्यंग्य की परिभाषा तलाशती खोपडियां


सुना है इन दिनों शहर व्यंग्य की सही और सटीक परिभाषा में उलझा हुआ है।
बवाल जी ने फोन पे पूछा - भैया ये सटायर की कोई नई परभाषा हो गई है क्या ?
अपन तो हिन्दी और साहित्य की ए बी सी डी नहीं जानते न ही ब्लागिंग की समझ है अपन में , न ही अपनी किसी ब्लागिंग के पुरोधा से ही गिलास-मंग्घे स्तर तक पहंच हैं जो कि उनकी बात का ज़बाव दे सकें सो अपन ने कहा भाई आप तो अपने बीच के लाल बुझक्कड़ हैं उनसे पूछा जाए ।
तभी हमने सड़क पर एक बैसाख नन्दन का दूसरे बैसाख नन्दन का वार्तालाप सुना {आपको समझ में नहीं आएगी उनकी आपसी चर्चा क्योंकि अपने भाई बन्दों की भाषा हम ही समझ सकतें हैं ।} आप सुनना चाहतें हैं..........?
सो बताए देता हूँ हूँ भाई लोग क्या बतिया रहे थे :
पहला :-भाई ,तुम्हारे मालिक ने ब्राड-बैन्ड ले लिया ..?
दूजा :- हाँ, कहता है कि इससे उसके बच्चे तरक्की करेंगें ?
पहला :-कैसे ,
दूजा :- जैसे हम लोग निरंतर तरक्की कर रहे हैं
पहला :-अच्छा,अपनी जैसी तरक्की
दूजा :- हाँ भाई वैसी ही ,उससे भी आगे
पहला :-यानी कि इस बार अपने को
दूजा :-अरे भाई आगे मत पूछना सब गड़बड़ हो जाएगा
पहला :-सो क्या तरक्की हुई तुम्हारे मालिक की
दूजा :- हाँ,हुई न अब वो मुझसे नहीं इंटरनेट के ज़रिए दूर तक के अपने भाई बन्दों से बात करता है। सुना हैकि वो परसाई जी से भी महान हो ने जा रहा है आजकल विश्व को व्यंग्य क्या है हास्य कहाँ है,ब्लॉग किसे कहतें हैं बता रहा है।
पहला :-कुछ समझ रहा हूँ किंतु इस में तरक्की की क्या बात हुई ?
दूजा :- तुम भी, रहे निरे इंसान के इंसान .........!!

10 टिप्‍पणियां:

  1. तेज और करारा व्यंग, बहुत सही बात कही है सून्दर प्रयास।

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  2. इरशाद भाई
    शुक्रिया
    आप का इस ब्लॉग पर दौरा लगा आभारी
    हैं

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  3. हा हा मुकुल जी, बहुत ही मज़ेदार व्यंग किया है आपने। ये बताएँ ये साभार तस्वीर आपको मिली कहाँ से ? हा हा
    दुनिया में बहुत से लोगों की शक्ल आजकल इन तस्वीरों से बहुत मिलती जुलती लगने लगी है। भई माजरा क्या है ? इन्हें देखकर हमें एक बहुत पुराना शेर याद आ गया, सुनियेगा--

    इधर भी गधे हैं, उधर भी गधे हैं
    जिधर देखियेगा, गधे ही गधे हैं
    ये क्या माजरा है ? ये क्या माजरा है ?
    के हम भी गधे और वो भी गधे हैं ।

    रिमार्क :- चुनाव आचार संहिता के मद्दे-नज़र आजकल हर तरह के व्यंग और टिप्पणियों को तंग-नज़र से देखने की प्रशासन को छूट है ।
    हा हा सा॓री जय हो।

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  4. • हा हा मुकुल जी, बहुत ही मज़ेदार व्यंग किया है आपने। • हाय !! शर्म से लाल हुआ
    1. दुनिया में बहुत से लोगों की शक्ल आजकल इन तस्वीरों से बहुत मिलती जुलती लगने लगी है।
    2. ये बताएँ ये साभार तस्वीर आपको मिली कहाँ से ? हा हा

    1. तस्वीर एक ही है डबल रोल में
    2. मित्र ने खुद भेजी मेरी उनसे घनिष्ठ आत्मीयता है
    • इधर भी गधे हैं, उधर भी गधे हैं
    जिधर देखियेगा, गधे ही गधे हैं
    ये क्या माजरा है ? ये क्या माजरा है ?
    के हम भी गधे और वो भी गधे हैं ।
    • वरुण भैया की मम्मी जी की कृपा से अपनी चल निकली वगरना शहर में

    रिमार्क :- चुनाव आचार संहिता के मद्दे-नज़र आजकल हर तरह के व्यंग और टिप्पणियों को तंग-नज़र से देखने की प्रशासन को छूट है ।
    सूचना सर माथे दादा

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  5. aapka chuhalpan,mastpan,dardpan , hamdardpan,apnapan,deewaanapan, aapki sari khoobiyan kaabiletareef hain.aap mein josh hai.eeshwar is mein aur chaar chaand lagaaye.keep it up for us.badhaai.

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  6. वरुण भैया की मम्मी हा हा
    बिल्कुल बजा फ़रमाया मुकुल भाई क्या कहना!
    सच कहा इन्हीं के चक्कर में बच्चे आजकल सर्कस देखना पसंद नहीं करते।

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!