29 मार्च 2009

इस आभासी फलक पे आपका विश्वास कैसा..?


मत्स्य गंधी होके जल से आपको एतराज़ कैसा
इस आभासी फलक पे आपका विश्वास कैसा..?
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पता था की धूप में होगा निकलना ,
स्वेद कण का भाल पे सर सर फिसलना
साथ छाजल लेके निकले, सर पे साफा बाँधके
खोज है मत रोकिये इस खोज में मधुमास क्या बैसाख कैसा ?
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ओ अनुज तुम बाड़ियों में शूल के बिरवे न रोपो
तुम सही हो इस-सत्य को कसौटी पे कसो सोचो
वरना कुंठा के तले , शक्ति का उपवास कैसा ...?
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4 टिप्‍पणियां:

  1. लेखक संघ के अध्यक्ष लिखवो सीखो फिर लिखो कछु भी न लिखो मित्र

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  2. जी चाहता है कि आपको एक बार फिर सबके सामने बेनकाब करुँ लेकिन
    आप पर समय जाया करना गलत है . आप को आपके कमेन्ट से तो पहचान गया था
    आपके आइ पी एड्रेस तक पहुँचना कठिन नहीं था अस्तु जब आप तकनीकी रूप से अनावृत हुए तो आनंद आ गया
    मित्र आप मुझसे जुड़े रहिए जैसे अभी जुड़े हैं
    सादर अभिवादन
    मुकुल

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  3. Anonymous said...
    लेखक संघ के अध्यक्ष लिखवो सीखो फिर लिखो कछु भी न लिखो मित्र

    28 March, 2009 7:52 PM

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  4. वरना कुंठा के तले , शक्ति का उपवास कैसा ...?
    बहुत उम्दा कहा मुकुल भाई। इस गूढ़ बात को इससे बेहतर तरीक़े से व्यक्त नहीं किया जा सकता था।

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!