मत्स्य गंधी होके जल से आपको एतराज़ कैसा
इस आभासी फलक पे आपका विश्वास कैसा..?
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पता था की धूप में होगा निकलना ,
स्वेद कण का भाल पे सर सर फिसलना
साथ छाजल लेके निकले, सर पे साफा बाँधके
खोज है मत रोकिये इस खोज में मधुमास क्या बैसाख कैसा ?
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ओ अनुज तुम बाड़ियों में शूल के बिरवे न रोपो
तुम सही हो इस-सत्य को कसौटी पे कसो सोचो
वरना कुंठा के तले , शक्ति का उपवास कैसा ...?
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मयकदा पास हैं पर बंदिश हैं ही कुछ ऐसी ..... मयकश बादशा है और हम सब दिलजले हैं !!
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29 मार्च 2009
इस आभासी फलक पे आपका विश्वास कैसा..?
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लेखक संघ के अध्यक्ष लिखवो सीखो फिर लिखो कछु भी न लिखो मित्र
जवाब देंहटाएंजी चाहता है कि आपको एक बार फिर सबके सामने बेनकाब करुँ लेकिन
जवाब देंहटाएंआप पर समय जाया करना गलत है . आप को आपके कमेन्ट से तो पहचान गया था
आपके आइ पी एड्रेस तक पहुँचना कठिन नहीं था अस्तु जब आप तकनीकी रूप से अनावृत हुए तो आनंद आ गया
मित्र आप मुझसे जुड़े रहिए जैसे अभी जुड़े हैं
सादर अभिवादन
मुकुल
Anonymous said...
जवाब देंहटाएंलेखक संघ के अध्यक्ष लिखवो सीखो फिर लिखो कछु भी न लिखो मित्र
28 March, 2009 7:52 PM
वरना कुंठा के तले , शक्ति का उपवास कैसा ...?
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा कहा मुकुल भाई। इस गूढ़ बात को इससे बेहतर तरीक़े से व्यक्त नहीं किया जा सकता था।