30 मार्च 2009

अर्चना का वक़्त है आ बातियाँ सुधार लें..!!


आ मीत लौट चलें गीत को सवाँर ले
अर्चना का वक़्त है आ बातियाँ सुधार लें
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भूल हो गयी अगर गीत में या छंद में
जुट जाएं मीत आ सुधार के प्रबंध में
कोई रूठा हो अगर तो प्रेम से पुकार लें
आ मीत .................................!!
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कौन जाने कुंठित मन कितने घर जलाएगा
कौन जाने मन का दंभ- "कितने गुल खिलाएगा..?"
प्रेमकलश रीता तो, चल कहीं उधार लें ..!!
आ मीत .................................!!
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आत्म-मुग्धता का दौर,शिखर के वास्ते ये दौड़
न कहीं सुकून है,न मिला किसी को ठौर
शंख फ़िर कभी मीत आ हाथ में सितार लें ॥!
आ मीत .................................!!
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15 टिप्‍पणियां:

  1. आ मीत लौट चलें गीत को सवाँर ले
    अर्चना का वक़्त है आ बातियाँ सुधार लें
    " कितने अनमोल और शुद्ध विचार व्यक्त हैं इन पंक्तियों में .....मन मोह लिया.."

    Regards

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  2. Aaj gussaa khatm
    tabhee to taza naya jordaar geet post kiya
    badhaiyaan

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  3. कपिला जी
    कुंठा की यही परिणिति है
    टिप्पणी के लिए आभार
    Regards

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  4. आपकी इस अति सुन्दर पोस्ट पर हमारी टीप शब्दश: वही मानी जाए जो परम आदरणीय सीमाजी ने दी है। उनकी टिप्पणी से बेहतर टिप्पणी भी इस पोस्ट के लिए दी नहीं जा सकती मुकुल भाई।

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  5. बहुत खूब सर जी । हकीकत यही है । प्रेम , सौहार्द्र से जीवन को सुखमय बनाया जाय । बहुत ही सुन्दर रचना ।एक संदेश देती हुई

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  6. कौन जाने कुंठित मन कितने घर जलाएगा
    कौन जाने मन का दंभ- "कितने गुल खिलाएगा..?"
    प्रेमकलश रीता तो, चल कहीं उधार लें ..!!

    वाह !!! अतिसुन्दर सौम्य मन मुग्ध करती प्रवाहमयी गीत...बहुत बहुत सुन्दर...मन प्रसन्न हो गया.

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  7. इस गीत में को जब शाम कोई गाया तो
    पता लगा वज़न से खारिज पाया
    आप ने फिर भी सराहा आभारी हूँ
    गीत पुनर्लेखन कर शीघ्र प्रस्तुत
    करूंगा क्षमा याचना के साथ

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!