अर्चना का वक़्त है आ बातियाँ सुधार लें
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भूल हो गयी अगर गीत में या छंद में
जुट जाएं मीत आ सुधार के प्रबंध में
कोई रूठा हो अगर तो प्रेम से पुकार लें
आ मीत .................................!!
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कौन जाने कुंठित मन कितने घर जलाएगा
कौन जाने मन का दंभ- "कितने गुल खिलाएगा..?"
प्रेमकलश रीता तो, चल कहीं उधार लें ..!!
आ मीत .................................!!
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आत्म-मुग्धता का दौर,शिखर के वास्ते ये दौड़
न कहीं सुकून है,न मिला किसी को ठौर
शंख फ़िर कभी मीत आ हाथ में सितार लें ॥!
आ मीत .................................!!
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आ मीत लौट चलें गीत को सवाँर ले
जवाब देंहटाएंअर्चना का वक़्त है आ बातियाँ सुधार लें
" कितने अनमोल और शुद्ध विचार व्यक्त हैं इन पंक्तियों में .....मन मोह लिया.."
Regards
Seemaa ji
जवाब देंहटाएंShukriyaa....
kaun jaane kunthhit man kitane ghar jalaayega--- bahut badia abhivyakti hai bdhai
जवाब देंहटाएंAaj gussaa khatm
जवाब देंहटाएंtabhee to taza naya jordaar geet post kiya
badhaiyaan
Shukriya madhav bhai
जवाब देंहटाएंकपिला जी
जवाब देंहटाएंकुंठा की यही परिणिति है
टिप्पणी के लिए आभार
Regards
आपकी इस अति सुन्दर पोस्ट पर हमारी टीप शब्दश: वही मानी जाए जो परम आदरणीय सीमाजी ने दी है। उनकी टिप्पणी से बेहतर टिप्पणी भी इस पोस्ट के लिए दी नहीं जा सकती मुकुल भाई।
जवाब देंहटाएंbahut sunder
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारा भजन है, पढकर मन निर्मल हो गया।
जवाब देंहटाएं-----------
तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
बहुत खूब सर जी । हकीकत यही है । प्रेम , सौहार्द्र से जीवन को सुखमय बनाया जाय । बहुत ही सुन्दर रचना ।एक संदेश देती हुई
जवाब देंहटाएंकौन जाने कुंठित मन कितने घर जलाएगा
जवाब देंहटाएंकौन जाने मन का दंभ- "कितने गुल खिलाएगा..?"
प्रेमकलश रीता तो, चल कहीं उधार लें ..!!
वाह !!! अतिसुन्दर सौम्य मन मुग्ध करती प्रवाहमयी गीत...बहुत बहुत सुन्दर...मन प्रसन्न हो गया.
सुंदर सुंदर
जवाब देंहटाएंइस गीत में को जब शाम कोई गाया तो
जवाब देंहटाएंपता लगा वज़न से खारिज पाया
आप ने फिर भी सराहा आभारी हूँ
गीत पुनर्लेखन कर शीघ्र प्रस्तुत
करूंगा क्षमा याचना के साथ
mukul ji,
जवाब देंहटाएंrachna bhavpoorn hai.
sundar geet
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