31 मार्च 2009

प्रशांत ने कहा है

prashant kouraw
को GIRISH BILLORE
दिनांक ३० मार्च २००९ २१:१६
विषय बावरे फकीरा नहीं इतिहास
इसके द्वारा मेल किया गया gmail.com

जानकारी छिपाएँ २१:१६ (14 घंटों पहले)


उत्तर दें


गिरीश भाई
कल मुझसे मेरे एक मित्र ने कहा I कुछ एसा... जो हम सभी आत्म अभिमानं के नाम पर कई बार कह सुन चुके है I वो ये की भाई जिसने जबलपुर को त्याग दिया उसका जीवन कुछ दूसरा ही हो गया समझने वाली बात है मिसाले वही पुरानी मसलन ओशो महर्षि महेश योगी शरद यादव वगेरा ..........
सवाल ये भी है की अब हमने अपने जागने से भी समझौता कर लिया है अपने शहर को हम गोया इसे देखते है जैसे किसी तांत्रिक का अभिशाप हो यदि कुछ बेहतर हो रहा है तो वो बाहर है व हमारे अलावा कोई दूसरा ही कर रहा है इस नपुंसकता का निर्लज्ज प्रदर्शन कई बार देखने सुनने मिलता है यदि कही पैसा है तो वो इंदौर या भोपाल में है यदि कही प्रतिभा है तो वो दुसरे नगरो में है ......यानि न हमारे पास कुछ है न हो सकता है इस अभिशप्त सोच के बाहर कब आ सकेंगे हम ?बावरे फकीरा को जो आयाम आपने दिया उससे जो हाज़मे ख़राब हुए उन पर अटके मत रहिये .कोसने एवं निंदा करने की जबलपुर की शक्ति को अनदेखा मत करिए .लोगो को स्वीकारना सहज नहीं होगा की आपने जबलपुर जेसी कथित छोटी जगह में बड़ा काम कर दिया है ........मानिये तो सही आपने बावरे फकीरा नहीं इतिहास रचा है

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सही बात कही है जी प्रशांत ने बिल्कुल ठीक आपने इतिहास रचा है।

    जवाब देंहटाएं
  2. बावरे फकीरा
    aap ki ek badi uplabdhi hai,is mein koi shak nahin hai. aage kya karne ke soch rahe hain ,bataye.

    जवाब देंहटाएं

कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!