1 मई 2009

आपस पीठ खुजाई तज के हिन्दी को सिरमौर बना दो....!!

समीर भाई की इस पोस्ट से प्रभावित है यह कविता
ऐसा खेला खेल के करूँ ब्लॉग ब्यौपार ?
जासे कागद पै रचूँ,रचनात्मक संसार.
जो समीर तुमने कहे,आखर-आखर सत्य
चिट्ठाकारी के कई हुए उजागर तथ्य .
कोऊ तनके पै चड़ै,कोऊ निकाली नुख्स
कोऊ छापै पोस्ट में , बहुत नै-पुरानी बुक्स
कहे मुकुल इस मंच पे भाँती भाँती के लोग
कछु सच्चे लेखक मिले ,कछु निंदा के जोग
जो निंदा के जोग उननकों भूलो भाई
ताऊ की तरह मुदित मन करौ लिखाई
ब्लागिंग नित नूतन विषयन पे,अपना उत्तम ठौर बना लो
आपस पीठ खुजाई तज के हिन्दी को सिरमौर बना दो

8 टिप्‍पणियां:

  1. इस रचना के माध्यम से आपने ब्लागजगत का अच्छा चित्रण किया है.......सचमुच हम लोगों को हिन्दी को सिरमौर बनाने हेतु कुछ सार्थक प्रयास करना चाहिए.

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  2. yar ye kya is vishay pe bhe ek kawitaa MUJHE BHEE BLAAGING SIKHA DO BHAI
    MAZA AATAA HAI KHUJAANE ME
    MANISH SHARMA

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  3. yar ye kya is vishay pe bhe ek kawitaa MUJHE BHEE BLAAGING SIKHA DO BHAI
    MAZA AATAA HAI KHUJAANE ME
    MANISH SHARMA

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  4. yar ye kya is vishay pe bhe ek kawitaa MUJHE BHEE BLAAGING SIKHA DO BHAI
    MAZA AATAA HAI KHUJAANE ME
    MANISH SHARMA

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  5. yar ye kya is vishay pe bhe ek kawitaa MUJHE BHEE BLAAGING SIKHA DO BHAI
    MAZA AATAA HAI KHUJAANE ME
    MANISH SHARMA

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  6. bahot khub rahi ye kavita bhi... dhero badhaayee aapko sahib... aur haan meri gazal pasand karne ke liye aapka shukriya huzur....

    aapka sneh yun hi banaa rahe yahi ummid karta hun...

    arsh

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  7. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!