23 मई 2009

" तुम साहिल वाले क्या जानो ...."

भाई विनोद कुमार पांडेयजी ,सादर अभिवादनयहाँ टिप्पणी के लिए । भाई एक मित्र ने अलाहाबाद से दोस्ती की हमसे आज बनारस से आप आए । मिलकर खुश हैं हम सभी ।
अंशु तिवारी के सवाल में नए ब्लॉगर का उछाह वहीं समीर जी ने सवाल किया तो मन में जबलईपुर वारो मित्रभाव दिखा . भाई विजय तिवारी इन दिनों बेहद व्यस्त हैं सो आप जान ही गए होंगे सो भाइयो ये वह सूची है जो जिसके सभी ब्लॉगर जबलपुरिया हैं . जब डूबे जी ने इस बात को जाना तो वे ज़हाज़ बनाने का सामान लेने गुरंदी मार्केट निकल पड़े. रहा संजू भैया का सवाल सो वे सदर से लगे केंट इलाके में रह रहे आर्मी आफिसर्स से इस बात की पता साजी के वास्ते निकल पड़े कि जबलपुर में बंदरगाह कैसे बनेगा.दिव्य नर्मदा वाले संजीव सलिल जी ने बताया की बंदर जहाँ भी होंगे अपनी आराम गाह बना लेंगे तब कहीं जाकर संजय तिवारी ’जी माने । साफ़ तौर पर ये तयशुदा है कि "बन्दर-गाह बरगी की उन पहाडियों में आसानी से बन सकतें हैं जहाँ बन्दर बहुतायत में हों "......... हों क्या हजूर हैं ही ।
आज फोन पर शैली बिटिया ने पूछा चिट्ठाजगत के मठाधीश !! कौन हैं और कैसे होते हैं...?
अपन भी लालबुझक्कड से बड़े वाले हैं बोल दिया-बेटे किसी ऐसे व्यक्ति को मठाधीश कहतें हैं जो मठे की दूकान चलातें हैं।
शैली जब संतोष कर लिया । अपने नाटक मंडली - वाले हिमांशु राय की सबसे ताज़ा पोष्ट 6 दिन बासी थी । इनको ईश्वर ने हवा में पोष्ट टांग देने का अनोखा वरदान दिया है तभी तो इनकी पोष्ट शीर्षक-विहीन होतीं हैं ।
"मल्लाहों को इल्जाम न दो तुम साहिल वाले क्या जानो "
ये तूफ़ान कौन उठाता है,ये कश्ती कौन डुबोता है॥ ['हफीज'जालंधरी]

6 टिप्‍पणियां:

  1. प्रयास बहुत अच्छा है. लिखते रहें.

    लेआऊट में काफी सुधार की गुंजाईश है, जरा कोशिश करके देखें !!

    सस्नेह -- शास्त्री

    हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
    http://www.Sarathi.info

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  2. मल्लाहों को इल्जाम न दो तुम साहिल वाले क्या जानो "
    ये तूफ़ान कौन उठाता है,ये कश्ती कौन डुबोता है

    --अभी से इल्जाम कैसा..अभी तो जमीन तैयार की जा रही है..हा हा!!

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  3. Sarthi ka akinchan blaag pe aanaa wah kyaa baat hai
    sameer bhaai
    do gaz n..?
    haa haa haa

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  4. बहुत खूब! लिखते रहिय्ये इसी तरह और हम पड़ने का लुत्फ़ उठाएंगे!

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!