नवगीत
संजीव 'सलिल'
नेह नर्मदा
मलिन हो रही
'सलिल' बचायें...
*
स्वार्थ लहरियाँ,
लोभ मछलियाँ,
भँवर सुखों की.
डाह पंक,
वासना चोई,
दुर्गन्ध दुखों की.
संयम सहित
समन्वय साधें
विमल बनायें.
नेह नर्मदा
मलिन हो रही
'सलिल' बचायें...
*
श्वासों को
आसों की ताज़ा
प्राण वायु दें.
अपनों को
सपनों की सुखप्रद
दीर्घ आयु दें.
प्राण-दीप
प्रज्वलित दिवाली
दीप जलायें.
नेह नर्मदा
मलिन हो रही
'सलिल' बचायें...
*
मुट्ठी भर
साधन लेकिन
चाहें दिगंत हैं.
अनगढ़ पथ
डगमग पर
राहें अनंत हैं.
चलें, गिरें, उठ,
हाथ मिला, बढ़,
मंजिल पायें.
नेह नर्मदा
मलिन हो रही
'सलिल' बचायें...
*
मयकदा पास हैं पर बंदिश हैं ही कुछ ऐसी ..... मयकश बादशा है और हम सब दिलजले हैं !!
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19 नव॰ 2009
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nice post bhai ji
जवाब देंहटाएंस्वार्थ लहरियाँ,
जवाब देंहटाएंलोभ मछलियाँ,
भँवर सुखों की.
डाह पंक,
वासना चोई,
दुर्गन्ध दुखों की.
बहुत उम्दा बात कही सलिल जी।