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21 दिस॰ 2009

ललित जी के मोहल्ले के भाग्यशाली लोग जो दफ्तर सही समय पर जातें हैं

जबलपुर ब्रिगेड के  ब्रिगेडियर महफूज़ जी ने  यहाँ एक साथ आपने इतने लोगों को अपना पन  देके कैद कर लिया अपने पास ऐसी कैद-कर सकने  की  रब सारे ब्लागर्स को दे यही सोच से ही  हिंदी में  उम्दा बातें इस जाल पर छा सकतीं हैं . रवीन्द्र प्रभात जी तो अक्टूबर माह से ही स्नेह रस बरसाने लगतें है  उनकी परिकल्पना भी अनोखी है सब को जोड़ते हुए ब्लॉग'स का वार्षिक विश्लेषण कदापि सरल काम नहीं है. इधर बी एस पाबला को भी कोई घमंड नहीं है की वे सभी को एक सूत्र में जोड़ रहें हैं "जन्म-दिन की सूचना देकर" कुल मिला कर अच्छाई अभी तक ज़िंदा है , See full size image  मूछों पे ताव देकर को भी चुनौती दे सकता है किन्तु ललित शर्मा जी  जी किसी की मदद करने के बाद ही अपनी मूंछों पर अंगूठे-तर्जनी को घुमाया फिराया करतें हैं. और ताऊ महाराज के क्या कहने  खूब ज़बरदस्त आत्मीयता बाँट रहे हैं .
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सु          सुभीता-खोली में किये गए चिंतन से उपजी यह पोस्ट सबके सामने लाना ज़रूरी है अत: इधर टांक  रहा हूँ  


की मूंछें देखिये और नीचे वाले फोटो  को देख कर जानिये दफ्तर जाने के लिए सबसे सही समय कौन बता सकता है ?
 
घडी सही है या शर्मा जी मेरे हिसाब से शर्मा जी ऐसा इस लिए कि हर दफ्तर जाने  वाले को शर्मा जी चेहरा याद करके दफ्तर के लिए एक घंटे पूर्व घर से निकलना चाहिए . अब सवा नॉ बज चुका है आप झट एक टिप्पणी छोडिये और दफ्तर के लिए निकलिए .
-ललित जी, (मुझे माफ़ कर देना) आपका स्मरण हो आया और   लगा कि दफ्तर जाने का सही समय आप की मूंछों से बेहतर कौन सुझा सकता है घडी का क्या चली चली न चली सच आपके मोहल्ले में आप की मूंछें ही ही याद दिलाती होंगीं.......   हमारे  मोहल्ले में तो सारे अड़ोसी-पड़ोसी मुछ मुंडे हैं  और हम रोज़ दफ्तर जाने में लेट हो जातें हैं आपके  मुहल्ले के करमचारी  कितने  भाग्यशाली है ....!
है न .......?   
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अजय भाई की यह प्रेम कहानी जब घर मन पता चली तो हमारी जैसी दुर्दशा करवा दी तनेजा जी ने
बीवीयाँ सब सह लेतीं हैं किन्त सौतन की कल्पना भी नहीं सह पातीं तनेजा साहब

जब ये तस्वीर देखी श्रीमती जी ने तो हमारी वो ख़बर ली की हमारे चेहरे के हवाइयां और तस्वीर के सारे रंग उड़ गए
 
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खैर छोडिये हम भी क्या बात कर रहे आज तो े ब्लॉग जबलपुर-ब्रिगेड को खूबसूरत बना दिया ललित जी ने कौन वही ख़ूबसूरत मूंछों वाले जिनने सुभीता-खोली  ,के महत्त्व पर मीमांसा के है .चलो सारे ब्रिगेडियर साथियो  "सेल्यूट करो तो ललित जी को "जे वाला आदेश "मिस रामप्यारी" ने भेजा है 
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15 टिप्‍पणियां:

  1. ललित जी को (मूछों समेत) सैल्यूट.

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  2. जय हो भैया, सुभीता चिंतन का समय हो गया है, आते एक धांसु पोस्ट ठेलते हैं। हा हा हा हा

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  3. भाई परमिंदर जी
    मूंछों पे कछु न कहोगे ?
    वरमा सा'ब मेल भेज दीजिये
    ब्रिगेडियर नहीं बनाना है क्या ?
    भाई ललित जी अपन तो चिंतन
    कर लिए हैं !

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  4. ललित जी की तो बात ही कुछ और है!!!

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  5. तौबा तौबा ये झा जी को क्या हो गया? जै हो जबलपुर ब्रिगेड की

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  6. बहुत बढ़िया! बहुत ही रोचक पोस्ट लिखी है.....अजय जी के फोटो बहुत बढ़िया है.....।अब ललित जी के कारण अगर लोग सही समय पर दफतर पहुँचते हैं तो.उन का आभार मानना चाहिए...जो सही समय की प्रेरणा बने हुए हैं:)

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  7. बाली जी
    आभार पधारने का
    उनसे ज़्यादा उनकी मूंछों का महत्त्व है
    इस मामले में , सुना है छत्तीसगढ़ में बड़ा
    हल्ला है उनकी मूंछों का

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  8. इनकी मूँछें देखकर तो लोग "नत्थूलाल" की मूँछें भूल चुके होंगें :)

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  9. देखो भाई लोगो, म्हारे भतिजे ललित की मूंछों को नजर मत लगावो, पहले सीधे से समझा दिया है, पूरे ब्लाग जगत मे एक ही तो बांका मूंछ वाला जवान है?

    रामराम.

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  10. Hum apni munch ke hisab se 7:25 par nikal jate hain aur latit ji munch ke samay coffee break.. :)

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  11. गिरीश जी आपने हल्ले के बारे में ठीक ही सुना है :-)

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  12. मूछों से ये समय देखने का तो बहुत बढिया जुगाड़ सुझाया है आपने...

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  13. BHAI MOONCHHEN HON TO LALIT JI KI TARAH AUR PAGDI HO TO GIRISH JI KE JAISA...


    REGARDS


    RAM K GAUTAM

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!

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