Ad

28 जन॰ 2010

डा० गणेश दत्त सारस्वत नहीं रहे

डा० गणेश दत्त सारस्वत नहीं रहे

(१० दिसम्बर १९३६--२६ जनवरी २०१०)

हिन्दी साहित्य के पुरोधा विद्वता व विनम्रता की प्रतिमूर्ति सरस्वतीपुत्र, डा० गणेश दत्त सारस्वत २६ जनवरी २०१० को हमारे बीच नहीं रहे।

शिक्षा : एम ए, हिन्दी तथा संस्कृत में पी० एच० डी०

प्राप्त सम्मान: उ० प्र० हिंदी संस्थान से अनुशंसा पुरुस्कार, हिंदी साहित्य सम्मेलन इलाहाबाद से साहित्य महोपाध्याय की उपाधि सहित अन्य बहुत से पुरुस्कार।

पूर्व धारित पद: पूर्व विभागाध्यक्ष हिंदी विभाग आर० एम० पी० पी० जी० कालेज सीतापुर आप ’हिन्दी सभा’ के अध्यक्ष तथा’ ’मानस चन्दन’ के प्रमुख सम्पादक रहे हैं।

सारस्वत कुल में जनम, हिरदय में आवास..

उमादत्त इनके पिता, सीतापुर में वास.

श्यामल तन झुकते नयन, हिन्दी के विद्वान .

वाहन रखते साइकिल, साधारण परिधान..

कोमल स्वर मधुरिम वचन, करते सबसे प्रीति.

सरल सौम्य व्यवहार से, जगत लिया है जीत..

कर्म साधना में रमे, भगिनी गीता साथ.

मानस चन्दन दे रहे, जनमानस के हाथ..

तजी देह गणतन्त्र दिन, छूट गये सब काज.

हुए जगत में अब अमर, सारस्वत महाराज

हिंदी की सारी सभा, हुई आज बेहाल..

रमारमणजी हैं विकल, साथ निरन्जन लाल..

आपस में हो एकता, अपनी ये आवाज.

आओ मिल पूरित करें, इनके छूटे काज..

अम्बरीष नैना सजल, कहते ये ही बात.

आपस में सहयोग हो, हो हाथों में हाथ..

--अम्बरीष श्रीवास्तव


सारस्वत जी नहीं रहे...

श्री सारस्वत जी नहीं रहे, सुनकर होता विश्वास नहीं.

लगता है कर सृजन रहे, मौन बैठकर यहीं कहीं....


मूर्ति सरलता के अनुपम,

जीवंत बिम्ब थे शुचिता के.

बाधक बन पाए कभी नहीं-

पथ में आडम्बर निजता के.


वे राम भक्त, भारत के सुत,

हिंदी के अनुपम चिन्तक-कवि.

मानस पर अब तक अंकित है

सादगीपूर्ण वह निर्मल छवि.


प्रभु को क्या कविता सुनना है?

या गीत कोई लिखवाना है?

पत्रिका कोई छपवाना है -

या भजन नया रचवाना है?


क्यों उन्हें बुलाया? प्रभु बोलो, हम खोज रहे हैं उन्हें यहीं.

श्री सारस्वत जी नहीं रहे, सुनकर होता विश्वास नहीं...

******************

सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम / दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

आइये! हम उन्हें कुछ श्रद्धा सुमन समर्पित करते हैं।

3 टिप्‍पणियां:

  1. भारत ब्रिगेड की और से विनत श्रद्धा सुमन

    जवाब देंहटाएं
  2. विनम्र श्रद्धांजलि।
    ब्‍लॉगवाणी से क्लिक करने पर लिंक टूट रहा है। कृपया जांच लीजिएगा।

    जवाब देंहटाएं

कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!

कितना असरदार

Free Page Rank Tool

यह ब्लॉग खोजें