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2 फ़र॰ 2010

यहाँ तीर्थ तुल्य माता होती

मेरे प्रिय गीतकार गुरु घनश्याम चौरसिया  बादल  की रचना जो दिल की गहराइयों में आज तक सम्हाली हुई है आप सभी के लिए सादर प्रस्तुत है

5 टिप्‍पणियां:

  1. नोट: लखनऊ से बाहर होने की वजह से .... काफी दिनों तक नहीं आ पाया ....माफ़ी चाहता हूँ....

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  2. बढ़िया गाया. गीत अच्छा लगा.

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  3. करता पश्चिम अगुवानी है??

    मैं समझता हूँ पूरब अगुवानी कर रहा है और पश्चिम अनुसरण कर रहा है...यह गीत के भाव होना था..क्या मैं सुनने में कुछ गलत या समझने में कुछ गलत??

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  4. जितना सुन्दर गीत ठीक उतनी ही सुन्दर रही प्रस्तुति... सुनाने के लिए आभार 'मुकुल' सर
    जय हिंद...

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!

कितना असरदार

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