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17 फ़र॰ 2010

हिन्दी ब्लागिंग नि:स्वार्थ होनी चाहिए :रानी विशाल न्यूयार्क

 विदेश में बसी भारतीय बेटियाँ अपने संस्कार आचार विचार सब कुछ साथ ले जातीं हैं .... रोप देतीं हैं इन्हीं संस्कारों को जहाँ भी वे जातीं हैं
रानी विशाल का ब्लॉग है काव्य तरंग 

 
 
रानी जी एवं विशाल जी  बिटिया अनुष्का के साथ

रानी विशाल जी के पिता श्री  श्री ओम प्रकाशजी ठाकुर                                                   माताजी श्रीमति शकुन्तला देवी


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रानी  जी ने अपने ब्लॉग पर सूचना दी है कि 
ब्लॉग जगत में पदार्पण का मेरा सिर्फ एक ही उद्देश्य है, वो ये की मैं अपना साहित्य आप सभी पाठक गण तकपंहुचा सकू । चूकी मैं बचपन से ही आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी के साहित्य से अत्यधिक प्रभावित हूँ इसीलिए मैंने अपने ब्लॉग का नाम उनकी ही एक अत्यधिक लोकप्रिय पुस्तक काव्यमंजूषा के ही नाम पर रखा था। हालाकि इस नाम से एक और ब्लॉग (अदा दीदी ) का है।किंतु ब्लॉग लिखने के पहले मैं ब्लोगिंग में उतना सक्रियनहीं थी, तो मुझे इसका अंदेशा न था । होता भी कैसे आज से कुछ तीन साल पहले अचानक कही रवी रतलामी जीका हिंदी ब्लॉग देखा और मैंने भी अपना ब्लॉग कव्यमंजूषा बना दिया । किंतु समय के अभाव के कारण मैं उसेलाइव नहीं कर पाई। पोस्ट लिखने का टाइम ही नहीं होता था । फिर आचानक से किसी दिन लेखन का जो ज्वारमेरे भीतर से फूटा की मैंने समय पाते ही ब्लॉग लाइव किया और पोस्ट करना शुरू कर दिया । अब तो मैं अच्छासमय ब्लोगिंग को दे भी पाती हूँ । किंतु अदा दीदी की यह मंशा है, और मैं भी ठीक समझती हूँ की पाठको को दोनोंब्लॉग में गफलत ना हो । इसी लिए मैं आज से अपने ब्लॉग के नाम को काव्यमंजूषा से काव्य तरंग कर रही हूँ ।मञ्जूषा की जगह तरंग की प्रेरणा भी आचार्यजी की तरंगिणी से ही ली है ।
"मेरा सोभाग्य तो वही होगा की आप सब मुझे मेरे ब्लॉग के नाम से नहीं बल्कि मेरी कविताओ से पहचाने" किंतुसंवाद की शुरुआत तो किसी नाम से ही हो पाती है । इसीलिए काव्य तरंग अपने नए स्वरुप में आप सबके समक्षप्रस्तुत है ........कविता की नई नई तरंगे लेकर !!
सादर
रानीविशाल
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12 टिप्‍पणियां:

  1. रानी जी के ब्लॉग पर लगभग रोज ही पहुँचता हूँ... यहाँ उनके विचार जानना और भी अच्छा लगा और उन्हें सुनकर खुशी हुई.. आपका आभार..
    जय हिंद... जय बुंदेलखंड...

    जवाब देंहटाएं
  2. रानी जी के काव्य-संग्रह के शीघ्र प्रकाशित होने के लिए शुभकामनायें...
    जय हिंद... जय बुंदेलखंड...

    जवाब देंहटाएं
  3. रानी जी से आपकी बातचीत सुनना बहुत बढ़िया रहा.

    उनके प्रकाशाधीन काव्य संग्रह के लिए अनेक शुभकामनाएँ.

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  4. Rani ki baat-cheet sunna accha laga..
    bahut bahut shubhkaamnaayein..
    Kavya sangrah ke chapne ki khushi hai ..aur uske liye agrim shubhkaamna ..
    Girish ji aap bahut hi accha kaam kar rahe hain..tareef ke kabil hai yah...badhai sweekar karein..hriday se..

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  5. बहुत अच्छा लगा रानी विशाल से आपकी वार्ता
    रानी विशाल संभावनाओं से ओतप्रोत ब्लागर हैं
    उनका यह विचार की खुद की नकारात्मक अनुभूतियों का
    छाप पूरे ब्लागजगत में न डालें स्वागत योग्य है -मगर यह संभव नही है
    क्योकि ब्लॉग लेखन किसी ऐसी स्थापना के ही प्रतिषेध में उद्भूत और साकार हुआ है .
    उनके उज्जवल भविष्य की शुभकामनायें ....
    बिल्लौरे जी आप इतिहास पुरुष बन गए हैं -ब्लागिंग में साक्षात्कार
    विधा में प्रोफेसनल पोड कास्टिंग के लिए ..बहुत बधायी
    आप का 'कूल' लहजा भा गया ! एक बात कहूं -इसे अधिकतम दस मिनट का ही रखें !
    (नहीं भाई,पोड कास्ट नहीं वैसे आपसे कभी बात करूंगा )

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  6. मैं गिरिशजी और आप सभी श्रोता गण की आभारी हूँ ..की आपने मुझ नाचीज़ के लिए भी कुछ समय निकाला !!
    आप सभी की शुभकामनाए मेरे साथ है, ये मेरा सोभाग्य है !
    ह्रदय से आभार !!

    जवाब देंहटाएं
  7. रानी जी के काव्य-संग्रह के शीघ्र प्रकाशित होने के लिए शुभकामनायें...

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत अच्छी... सधी हुई बात चीत.... और रानी जी का मैं आभारी हूँ.....

    जवाब देंहटाएं
  9. रानी विशाल जी का बहुत सु्दर परिचय दिया आपने गि्रीश जी। आभार

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  10. रानी जी जय महाकाल, मालवा प्रदेश की एक और ब्लॉगर, जब पोडकॉस्ट सुना तभी पता चला, दाल बाफ़ले का सुनकर तो मुँह में रुकते ही नहीं बन रहा है, हम जब भी उज्जैन जाते हैं तो दाल बाफ़ले लड्डू जरुर घर पर बनाते हैं और बनवाते हैं।

    आपका परिचय जानकर बहुत अच्छा लगा।

    गिरिश जी - आपने तो बहुत ही बढ़िया तरीका अपनाया है, ब्लॉगर्स को एक दूसरे को जानने के लिये। बहुत बहुत बधाई आपको भी।

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  11. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!

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