वरिष्ठ कवि प्रो. श्यामलाल उपाध्याय, मंत्री हिंदी वांग्मय पीठ कोलकाता की कवितायेँ--
१. तितीर्षा
भाव की प्रत्यंच धर
कार्मुक सजीला कर्म का
ज्ञान का शर सिद्ध हो
अनिरुद्ध हो पथ व्यक्ति का.
डूब जाएँ सिन्धु में
सागर-महासागर सभी
पर तितीर्षा लोक जीवन की
शमित होगी नहीं.
डांड छूटे, नाव डूबे
पर कभी डूबा न दुर्बल
बाहु का पतवार हो
पतवार का हो बाहु संबल..
****************************
२. उपेक्षित
मैं नागरिक भारत का
धन-सम्पदा-परित्यक्त
भू-संपत्ति अपहृत
अधिकार प्रवंचित
चिर प्रवासी
किसान से मजदूर
विधुर विपन्न.
जगन्नियंता नारायण!
कितने करुण,
कैसे बने थे दीनानाथ
अवढरदानी!
पर भूमिगत लक्ष्मी के
प्रयाण ने
तुम्हें भी अधिकार विहीन
कर दिया., वरन कृपानाथ के रहते
मेरी दुर्गत न होती..
********************
मयकदा पास हैं पर बंदिश हैं ही कुछ ऐसी ..... मयकश बादशा है और हम सब दिलजले हैं !!
Ad
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
प्रो. श्यामलाल उपाध्याय की रचनाएँ पढ़वाने का आभार.
जवाब देंहटाएं