भोपाल के हसन,अब्दुल,ज़ाकिर,करीम,सोहन,राम,मीना,सन्जू,मन्जू, को क्या कहोगे बाल दिवस पर ?
ये तस्वीर उनके मेहमान खाने में लगाने भेज दो
बुआ वाला भोपाल तब से अब तक बीमार हैं ..... आखिरी सांस का इन्तज़ार करती बुआ अभी भी तीन दिसम्बर चौरासी से अब तक ज़िन्दा है उनके साथ ज़िंदा हैं अब तक सवाल जो व्यवस्था,कानून,न्याय और व्यापार के अगुओं से पूछे जाने हैं. उनकी नज़र में एण्डरसन का चित्र है कि नहीं मालूम नहीं. वे क्या जाने कौन है एण्डरसन कैसा है इसे तो वे जानते थे जिनने भोपाल के साथ ....................बेवफ़ाई की.जी वे एन्डरसन को जानते ही नहीं मानते भी हैं. तभी तो ..........? बुआ क्या जाने नेहरू चाचा के देश में तड़पती फ़िर यकायक शान्त प्राणहीन होती शिशुओं की देह ...जो बच गये वो हसन,अब्दुल,ज़ाकिर,करीम,सोहन,राम,मीना,सन्जू,मन्जू,अपाहिज़ बीमार ज़िन्दगी जी रहे हैं.इस बाल दिवस पर क्या जवाब दिया जाए उनको .....?खैर ये तुम सोचो तुम पर तो एण्डरसन की ज़वाब देही थी न . भोपाल वाली बुआ की ज़वाब देही तो हमारी है और ...........हसन,अब्दुल,ज़ाकिर,करीम,सोहन,राम,मीना,सन्जू,मन्जू,की...?
उनकी ज़वाब देही उनके माँ - बाप की ...!
तुम तो जो भी हो सच आदमी वेश में ''......'' हो...! और क्या उपमा दें तुमको ?
बस शोक मनाएंगे हम हिंदुस्तानी तो ...... इस बात का कि हमारे लोग नारकीय यातना भोग रहे हैं और इस बात का भी कि आपकी अन्तराआत्मा ज़िन्दा ही नहीं हैं ज़िंदा नहीं थी !
बताओ किस चौराहे पर तुम्हारी प्रतिमा लगानी है..?
यह पोस्ट दिल को छू गई...
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