24 जून 2010

प्‍यार

राहो मे पलके बिछा कर
तेरा इंतजार कर रहा हूँ।
अपनी चाहत को तेरे दिल मे बसा कर
अपना इश्क-ए-इज़हार कर रहा हूँ।

चाहत को अपनी चाह कर भी,
इज़हार नही कर पा रहा हूँ।
तेरी चाहत मे दिल मे दर्द लेकर
अपने को दिल को दर्द दे रहा हूं।

मै तुम्‍हे देखता हूँ
देखता ही रह जाता हूँ।
मै जहाँ जाता हूँ
सिर्फ तुझे ही पाता हूँ।।

मै अपने प्‍यार को खुद मार रहा हूँ ,
चाह कर भी कुछ नही कर पा रहा हूँ।
काश कोई करिश्‍मा हो जाये,
सारे बंधन तोड़ कर हम एक हो जाये।।

3 टिप्‍पणियां:

  1. मै अपने प्‍यार को खुद मार रहा हूँ ,
    चाह कर भी कुछ नही कर पा रहा हूँ।
    काश कोई करिश्‍मा हो जाये,
    सारे बंधन तोड़ कर हम एक हो जाये।।
    --
    सुन्दर रचना!
    --
    आपकी चाह जल्दी रूरी हो यही कामना है!

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  2. स्वभाविक है
    इज़हार हमेशा ज़रूरी है जी

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  3. ांच्छी कोशिश है अपनी भावनाओं को शब्दों मे उतारने की। धन्यवाद्

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!