शरद पूर्णिमा की उजली रात और तनाव
अपना दु:ख और दर्द किससे कहें किससे न कहें ? बस इतना जानिये जीवन भर हर एक समस्या से दो-दो हाथ करते हुए जीवन में रंग भरने का जुनून है और कुछ ख़ास बात नहीं है ज़िंदगी में फिर भी हर असफलता निराशा के बाद सुन्दर कल की आस लिए आँखों में जीते और जीते हैं .. कह देते हैं - हाँ यही तो है ज़िंदगी.! जो बहुरंगी भी बेरंगी बस थोड़ा धीरज एक सच्चा मित्र और जीवन साथी बस आज शाम चांद सम्पूर्ण कलाओं के साथ चमका रहा है कायनात के एक एक हिस्से को .हर कोई चांद को निहारता उसमें बसे शीतल-सौन्दर्य का गीत गाता नज़र आ रहा है. कोई अपना दर्द चाह के भी अपने संग साथ कैसे रख सकता है एक शशि किरण ही निराशा को बिदा कर देती है. निरंतर तनाव देती ज़िन्दगी में सदा हर कदम सम्हल के चलना कितना ज़रूरी है. सभी वाक़िफ़ हैं इस बात से फ़िर ग्रहों की प्रतिकूलता के चलते आप दुर्भाग्यवश कोई किसी संकट में आप आ गये तो कम लोग ही आप किसी विक्टिम को आज़ कल कोई विश्वासी नज़र से नहीं देखता. हम इसी दर्द को लेकर कभी कभी हताश हो जाते हैं . गम्भीर अवसाद में चले जाते हैं कमोबेश आज मुझे भी कुछ तनाव है जो गहरे अवसाद की सीमा तक ले आया मुझे . फ़िर अचानक जब शरद-पूर्णिमा के चांद से मुलाक़ात हुई .और बस कुछ राहत मिली .
शरद पूर्णिमा का उजाला आपके जीवन में बना रहे...
जवाब देंहटाएंदादा तनाव का कारण चंद्रमा ही है। इसके आकर्षण से तनाव में वृद्धि होती है। जब खींचाव होगा तो तनाव भी होगा। लहरों को चंद्रमा के प्रेम ने अपनी ओर खींच लिया। अभिसारानंद ने उन्हे स्थिर कर दिया,चंद्रमा ओर खींचती हुई लहरें पर्वत बन गयी। जो अभी स्थिर हैं।
जवाब देंहटाएंअपका तनाव जल्द दूर हो और शरद पूर्णिमा का उजाला आपके जीवन मे आये इसी कामना के साथ। शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंउत्साह बना रहे,
जवाब देंहटाएंदुख आयेंगे, सह जायेंगे।
जो गिरीश मस्तक धरे, वही चन्द्र को मौन.
जवाब देंहटाएंअमिय-गरल सम भाव से, करे ग्रहण है कौन?
महाकाल के उपासक, हम न बदलते काल.
व्याल-जाल को छिन्न कर, चलते अपनी चाल..