उदासी और जीवन के अवसादों के मध्य अचानक कोई अदभुत बात हो जाए तो प्राणों से शरीर में पुन: शक्ति-संचरण स्वाभाविक है. यही हुआ मी साथ विगत माह अवसाद की पराकाष्ठा के दौर में सुखद सन्देश से उपजे रसायन से जीने की इच्छा बलवती हो गई किसी एक जीवन इसे ही कहते हैं .. हुआ यूँ कि
07/11/2010 को देर रात आभास के पापा उनके पुत्र युवा संगीतकार श्रेयस से फ़ोन पर चर्चा हुई चाचा हमें अब देवी "शक्ति-आराधना-एलबम" करना है. पापा (श्री रवीन्द्र जोशी) की बहुत इच्छा है नया भक्ति एलबम करने का मन है श्रेयस का ये गीत “मातृ-शक्ति” को समर्पित होंगे जिसके बिना सृजन की परिकल्पना भी नहीं की जा सकती इन गीतों में शक्ति की आराधना कैसे करूंगा मुझे नहीं मालूम पर तय है कि सब वही होगा जो मां चाहेंगीं मुझे क्या करना है कब करना है कैसे करना है ये सब मां शारदा पर छोड़ता हूं इस आव्हान के साथ कल देर रात यानी 18/11/2010 को लिखे गीत के दो पढकर आपके समक्ष प्रस्तुत हैं :-
IIश्री गणेशाय नम:II
शारदे मां शारदे मन को धवल विस्तार दे
दिव्य चिंतन नीर अविरल गति विनोदित देह की !
छब तुम्हारी शारदे मां सहज सरिता नेह की !!
घुप अंधेरों में फ़ंसा मन ज्ञान दीपक बार दे …!!
शारदे मां शारदे मन को धवल विस्तार दे
मां तुम्हारा चरण-चिंतन, हम तो साधक हैं अकिंचन-
डोर थामो मन हैं चंचल, मोहता क्यों हमको कंचन ?
ओर चारों अश्रु-क्रंदन, सोच को विस्तार दे…!!
शारदे मां शारदे मन को धवल विस्तार दे
सुन्दर पंक्तियाँ, संगीत में सुनने की इच्छा है।
जवाब देंहटाएंप्रात:स्मरणीय माँ सरस्वती की वन्दना...एक सुखद शुरूआत...आभार...
जवाब देंहटाएंपाडकास्टिंग के लिये आभार
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