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5 अप्रैल 2011

नव संवत्सर में... संजीव 'सलिल'

नव संवत्सर में...


संजीव 'सलिल'
*
मीत सत्य नारायण से पहचान करें नव संवत्सर में.
खिलें कमल से सलिल-धार में, आन करेंनव संवत्सर में..
काली तेरे घर में, लक्ष्मी मेरे घर में जन्मे क्योंकर?
सरस्वती जी विमल बुद्धि वरदान करें नव संवत्सर में..
*
शक्ति-पर्व पर आत्मशक्ति  खुद की पहचानें . 
नहीं किसी से कम हैं हम यह भी अनुमानें. 
मेहनत लगन परिश्रम की हम करें साधना- 
'सलिल' सकल जग की सेवा करना है- ठानें..
*
एक त्रिपदी : जनक छंद
*
हरी दूब सा मन हुआ
जब भी संकट ने छुआ
'सलिल' रहा मन अनछुआ..


और अंत में...
एक गेंद के पीछे भागें ग्यारह-ग्यारह लोग
एक अरब काम ताज देखें अजब भयानक रोग
रामजी देश बचाना
रोग यह शीघ्र छुड़ाना...


1 टिप्पणी:

कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!

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