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13 जून 2011

बिहार में पुलिसिया बर्बरता के लिये  जिम्मेदार व्यवस्था से ज़वाब लेकर हम क्या करेंगें हमारी पीड़ा तो यह कि इस देश में  
बर्बरता का बड़ता आकार न जाने कब हमारी आने वाली पीढ़ी को लील जाए, शायद हमको भी कौन जाने. भारत में इस मर्मांतक स्थिति के लिये हम ही ज़िम्मेदार हैं, भ्रष्टाचार पर आवाज़ उठाना "ठगी" साधारण अपराध की सज़ा सरे आम मौत 
और आतंक वाद की सज़ा नक्सल वाद की सज़ा ...??
क्या हो गया है इस देश को यहां कोई ऐसा राष्ट्रप्रेमी क्यों नहीं आगे आता जो देश  को सच्चा मार्ग सुझाए, क्या बिहार क्या अन्य प्रदेश  सभी जगह सर्वहारा यानी आख़िरी छोर वाला आम आदमी यूं ही तो मरता है. शायद वो वक्त दूर नहीं जब यह व्यवस्था स्वयमेव चरमरा के धाराशाई न हो जाए . सुधार लो भाई इस इंतज़ाम को 

2 टिप्‍पणियां:

  1. पुलिस का यह बर्बर स्वरूप बदलना होगा।

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  2. कौन बदलेगा? जो बदलने चले थे वो एक और ब्रिगेड खडी करने चले हैं बर्बरता समाज का मुखौटा बन गया है। कोई चमत्कार ही बदल सकता है इसे।

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!

कितना असरदार

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