सृजन की फिर कल्पना क्या ? पूरने वाली न हो तो द्वार पर फिर अल्पना क्या ?
लक्ष्मी जब ना रही कैसे मनाओगे दीवाली ? सोचिये बिन अन्नपूर्णा सज सकेगी कैसे थाली ?
ना रही देवी अगर तो देवता की अर्चना क्या ? सृष्टि ही जब नष्ट होगी सृजन की फिर कल्पना क्या ?
पुत्र ही बस पुत्र होंगे पुत्र –वधु आयेगी कैसे ? वंश-वृद्धि की लता आंगन में लहरायेगी कैसे ?
जब नहीं किलकारियाँ फिर हर्ष क्या और वेदना क्या ? सृष्टि ही जब नष्ट होगी सृजन की फिर कल्पना क्या ?
तुम यदि बेटे औ बेटी में जरा भी फर्क दोगे पूर्वजों के पास जब जाओगे तो क्या तर्क दोगे ?
छोड़ दो संहार , समझो बेटियों बिन सर्जना क्या ? सृष्टि ही जब नष्ट होगी सृजन की फिर कल्पना क्या ?
बोए जाते है बेटे और उग आती हैं बेटियां खाद पानी बेटों में और लहलहाती हैं बेटियां
एवेरेस्ट की ऊँचाइयों तक ठेले जाते हैं बेटे और चढ़ जाती हैं बेटियां
रुलाते हैं बेटे और रोती हैं बेटियां कई तरह गिरते और गिराते हैं बेटे
और संभाल लेती हैं बेटियां
सुख के स्वपन दिखाते हैं बेटे जीवन का यथार्थ होती हैं बेटियां जीवन तो बेटों का है और मारी जाती हैं बेटियां- कविता: सविता
और संभाल लेती हैं बेटियां
Savita (Bubhkahera Village, near Tapukara, Rajasthan)
मेंहदी, कुमकुम, रोली का, त्योहार नहीं होतारक्षाबन्धन के चन्दन का, प्यार नहीं होता
उसका आंगन एकदम, सूना सूना रहता है
जिसके घर में बेटी का, अवतार नहीं होता
सूने दिन भी दोस्तो, त्योहार बनते हैं
फूल भी हंसकर, गले का हार बनते हैं
टूटने लगते हैं सारे बोझ से रिश्ते
बेटियां होती हैं तो, परिवार बनते हैं
झूले पड.ने पर मौसम, सावन हो जाता है
एक डोर से रिश्ते का, बन्धन हो जाता है
मेंहदी के रंग, पायल, कंगन, सजते रहते हैं
बेटी हो तो आंगन वृन्दावन हो जाता है
जैसे संत पुरूष को पावन कुटिया देता है
गंगा जल धारण करने को लुटिया देता है
जिस पर लक्ष्मी, दुर्गा, सरस्वती की किरपा हो
उसके घर में उपर वाला बिटिया देता है
उसका आंगन एकदम, सूना सूना रहता है
जिसके घर में बेटी का, अवतार नहीं होता
सूने दिन भी दोस्तो, त्योहार बनते हैं
फूल भी हंसकर, गले का हार बनते हैं
टूटने लगते हैं सारे बोझ से रिश्ते
बेटियां होती हैं तो, परिवार बनते हैं
झूले पड.ने पर मौसम, सावन हो जाता है
एक डोर से रिश्ते का, बन्धन हो जाता है
मेंहदी के रंग, पायल, कंगन, सजते रहते हैं
बेटी हो तो आंगन वृन्दावन हो जाता है
जैसे संत पुरूष को पावन कुटिया देता है
गंगा जल धारण करने को लुटिया देता है
जिस पर लक्ष्मी, दुर्गा, सरस्वती की किरपा हो
उसके घर में उपर वाला बिटिया देता है
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बहुत शोर हो रहा था
क्रांति आ रही है... क्रांति आ रही है...?
वह सो रहा था
उठकर बैठ गया
खड़े होने की जरुरत ही नहीं पड़ी
क्योंकि क्रांति आई ही नहीं
क्रांति आ रही है... क्रांति आ रही है...?
वह सो रहा था
उठकर बैठ गया
खड़े होने की जरुरत ही नहीं पड़ी
क्योंकि क्रांति आई ही नहीं
तभी उस शोर में एक आवाज गूंजी...
क्रांति इस देश में कभी नहीं आएगी
ऐसा कभी भी नहीं होगा
जहाँ कन्या भ्रूर्ण हत्या होती हैं
वहां क्रांति जन्म कैसे लेगी... ?
और जब जन्म ही नहीं लेगी
तो फिर आएगी कैसे...???
क्रांति इस देश में कभी नहीं आएगी
ऐसा कभी भी नहीं होगा
जहाँ कन्या भ्रूर्ण हत्या होती हैं
वहां क्रांति जन्म कैसे लेगी... ?
और जब जन्म ही नहीं लेगी
तो फिर आएगी कैसे...???
तीनो गहन और सार्थक्।
जवाब देंहटाएंबिना नारी के सृजन का कल्पना बेमानी है।
जवाब देंहटाएंबढिया प्रस्तुति।
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